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हमारे देश में नारी की आबरू उसकी जान से बड़ी है, इसका जीता जागता उदाहरण है चंदेरी का जौहर,,
चंदेरी के इतिहास का काला दिन जब बाबर के हमले में राजा की मौत के बाद आग में कूद पड़ी 1600 वीरांगनाएं
विक्रांत राय, बीना
Sagar. चंदेरी यानी मालवा का प्रदेश द्वार यहां की राजपूतानियों और रानी मणिमाला ने आज ही के दिन 29 जनवरी 1528 को जोहर किया।
चंदेरी शहर बुंदेलखंड और मालवा की सीमाओं पर मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में स्थित है, जिसका इतिहास हमें 11 वीं शताब्दी में ले जाता है। यह शहर 11 वीं शताब्दी से 18 वीं शताब्दी तक के ऐतिहासिक स्थलों से भरा हुआ है और इसने अच्छे और बुरे दोनों समय देखे हैं।
इतिहास कहता है कि चंदेरी में 1528 में महाराजा मेदनी राय खंगार मुगल आक्रांता बाबर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तो उनकी पत्नी मणिमाला ने 1500 महिलाओं के साथ आग में जलकर जौहर कर लिया था। यह मध्यकाल का सबसे बड़ा जौहर माना जाता है। इसमें महिलाओं के जलने की लपटें 15 कोस दूर से देखी गईं थीं। पुण्यतिथि पर मुगलों का सामना कर देश की रक्षा के लिए प्राण देने वाले वीरों और वीरांगनाओं को शत-शत नमन…बड़े दुःख की बात है कि यह स्थान केवल खंगार जाति के इतिहास तक सिमटकर रह गया।
हालांकि अब स्थानीय लोग इसका महत्व समझने लगे हैं लेकिन सरकार की नींद अब भी नहीं खुली है। क्षत्रिय खंगार वंश का यह दूसरा जौहर स्थल है। गढ़कुंडार में भी मुश्लमान आक्रमणकारियों से युद्ध में वीरगति के बाद राजकुमारी केशरदे ने 1000 से ज्यादा महिलाओं के साथ आग में जलकर प्राण दिए थे। दोनों ही स्थान मध्यप्रदेश में हैं। वामपंथी इतिहासकारों की उपेक्षा के चलते यह दोनों ही स्थान केवल खंगार जाति के प्रयासों से जीवंत हैं। यह केवल किसी जाति का गौरव नहीं बल्कि हर भारतवाशी के लिए अपने गौरवशाली पूर्वजों की निशानियां हैं।।। जय हिंद, वंदे मातरम… महाराजा मेदनी राय और महारानी मणिमाला अमर रहें।