श्री कृष्ण जितने सरल उतने ही रहस्यमयी।

 श्री कृष्ण जितने सरल उतने ही रहस्यमयी।

कौन सी 64 कलाओं में पारंगत थे भगवान श्री कृष्ण।

भगवान श्रीकृष्ण को पूर्णावतार कहा जाता है। श्रीकृष्ण से जुड़े रहस्यों, मान्यताओं और उनकी शक्तियों को लेकर अनेक मत मतांतर रहे हैं। वैसे तो उनके बारे में कई रहस्य छुपे हुए हैं लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे रहस्य जिन्हें संभवत: आप नहीं जानते होंगे। वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण विष्णु के 8वें अवतार हैं लेकिन देवी और कालिका पुराण अनुसार इस अवतार में विष्णुजी के के अलाावा  कालिका माता का भी कृष्ण अवतार में विशेष प्ररभाव है। वृंदावन में एक ऐसा मंदिर विद्यमान है, जहां कृष्ण की काली रूप में पूजा होती है। उन्हें काली देवी कहा जाता है।  जिन्हें माखन मिश्री का भोग लगाया जाता है।

योगमाया और श्री कृष्ण

इस तरह योगमाया का रहा प्रभाव

भगवान श्रीकृष्ण से जेल में बदली गई यशोदा पुत्री का नाम एकानंशा था, जो आज विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजी जाती हैं। श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी कहा गया है इसीलिए उनका अन्य नाम कृष्णानुजा है। इसका अर्थ यह कि वे भगवान श्रीकृष्ण की बहन थीं। इस बहन ने श्रीकृष्ण की जीवनभर रक्षा की थी। इसे ही योगमाया कहते हैं।

सांदीपनि आश्रम उज्जैन

कृष्ण ने बालपन में उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में रहकर 14 विद्या, 64 कलाएं सीखी थीं। उनके साथ बड़े भाई बलराम और मित्र सुदामा भी थे। इसीलिए कृष्ण की शिक्षास्थली के रूप में भी उज्जैन का नाम पहचाना जाता है।

मंदिरों में होगा पूजन अर्चन

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी गुरुवार को पूरा देश कृष्ण के जन्मोत्सव की लीला में लीन है। जन्मोत्सव को लेकर कृष्ण मंदिरों में सुंदर झांकियां शुशोभित हैं। लेकिन कोरोना काल में मंदिरों ने लोगों से घर पर रहकर ही पूजन की अपील की है। गुरुवार रात 12 बजे शहर के सभी मंदिरों में शंख, घडिय़ाल, झांझ मंजीरे गूंज उठेंगे तो शहर नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की गूंज से गुंजायमान होता नजर आएगा।

  • उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि भगवान श्रीकृष्ण के गुरु थे। इसी आश्रम का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। यह स्थान शहर से 2 किलोमीटर दूर है। इस आश्रम में भगवान श्री कृष्ण, सुदामा तथा बलराम ने आश्रम की परंपरा अनुसार अध्ययन कर 14 विद्या व 64 कलाएं सीखी थीं। गुरु के आश्रम में युद्ध कौशल की कलाएं भी सिखाई जाती थीं तथा दिन के अंत में आध्यात्मिक संरेखण ही मुख्य उद्येश्य था

जानिए, कौन-कौन सी 64 कलाओं में पारंगत थे श्रीकृष्ण

64 कलाओं में पारंगत

1- नृत्य – भगवान श्रीकृष्ण नाचने की कला में पारंगत थे।
2- वाद्य – संगीत की ऐसी कोई कला जो भगवान श्रीकृष्ण को नहीं आती हो।
3- गायन विद्या – नृत्य और वाद्य यंत्र बजाने के अतिरिक्त वे गायन की कला में भी निपुण थे।
4- नाट्य – तरह-तरह के हाव-भाव व अभिनय के बल पर ऐसा जादू चलाते थे कि हर कोई खिंचा आता था।
5- इंद्रजाल – सभी को वशीभूत करने की जादूगरी खूब आती थी।
6- नाटक – अपनी बाल लीलाओं में जो नाटक किए वे सभी जानते हैं।
7- सुगंधित चीजें- इत्र, तेल आदि बनाना।
8- फूलों के आभूषणों से शृंगार करना।
9- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या।
10- बच्चों के खेल में वे हमेशा तैयार रहते थे।
11- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या
12- मन्त्र विद्या, गुरु द्वारा सीखे थे उन्होंने विभिन्न मंत्र।
13- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्न उत्तर में शुभा-शुभ बतलाना।
14- रत्नों को अलग-अलग प्रकार के आकारों में काटना।
15- कई प्रकार के मातृका यन्त्र बनाना।
16- सांकेतिक भाषा बनाना।
17- जल को बांधना।
18- बेल-बूटे बनाना।
19- चावल और फूलों से पूजा के उपहार की रचना करना। (देव पूजन या अन्य शुभ मौकों पर कई रंगों से रंगे चावल, जौ आदि चीजों और फूलों को तरह-तरह से सजाना)
20- फूलों की सेज बनाना।
21- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना, इस कला के जरिए तोता-मैना की तरह बोलना या उनको बोल सिखाए जाते।
22- वृक्षों की चिकित्सा
23- भेड़, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति-कला।
24- उच्चाटन की विधि।
25- घर आदि बनाने की कारीगरी।
26- गलीचे, दरी आदि बनाना।
27- बढ़ई की कारीगरी।
28- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना यानी आसन, कुर्सी, पलंग आदि को बेंत आदि चीजों से बनाना।
29- तरह-तरह खाने की चीजें बनाना यानी कई तरह सब्जी, रस, मीठे पकवान, कड़ी आदि बनाने की कला।
30- हाथ की फुर्ति के काम।
31- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना।
32- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना।
33- द्यू्त क्रीड़ा।
34- समस्त छन्दों का ज्ञान।
35- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या।
36- दूर के मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण।
37- कपड़े और गहने बनाना।
38- हार-माला आदि बनाना।
39- विचित्र सिद्धियां दिखलाना यानी ऐसे मंत्रों का प्रयोग या फिर जड़ी-बूटियों को मिलाकर ऐसी चीजें या औषधि बनाना, जिससे शत्रु कमजोर हो या नुकसान उठाए।
40- कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना, स्त्रियों की चोटी पर सजाने के लिए गहनों का रूप देकर फूलों को गूंथना।
41- कठपुतली बनाना, नाचना
42- प्रतिमा आदि बनाना
43- पहेलियां बूझना
44- सूई का काम यानी कपड़ों की सिलाई, कसीदाकारी बुनना।
45 बालों की सफाई का कौशल।
46- मन की बात या दूसरों के राज बता देना।47- कई देशों की भाषा का ज्ञान।
48 मलेच्छ-काव्यों को समझ लेना, ऐसे संकेतों को लिखने व समझने की कला जो उसे जानने वाला ही समझ सके।
49 सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा।
50 सोना-चांदी आदि बना लेना।
51 मणियों के रंग को पहचानना।
52- खानों की पहचान।
53- चित्रकारी
54- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना
55- शय्या-रचना
56- मणियों की फर्श बनाना यानी घर के फर्श के कुछ हिस्से में मोती, रत्नों से जडऩा।
57- कूटनीति
58- ग्रंथों को पढ़ाने की चातुराई
59- नई-नई बातें निकालना
60- समस्यापूर्ति करना
61- समस्त कोशों का ज्ञान
62- मन में कटक रचना करना यानी किसी श्लोक आदि में छूटे पद या चरण को मन से पूरा करना।
63-छल से काम निकालना
64- शंख, हाथीदांत सहित कई तरह के गहने तैयार करना।

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