अबकी राखी सूनी कलाइयों ने की बहनों की रक्षा।

 अबकी राखी सूनी कलाइयों ने की बहनों की रक्षा।

 

अमित प्रभु मिश्रा

इस राखी सूनी कलाइयों ने की बहनों की रक्षा।

बात रेशमी धागे भर की नहीं है, रिश्ता है रक्षा के भाव और प्रेम संवेदनाओं का। इसी को निभाने महामारी के दौर में कई कलाइयां सूनी रह गईं। लेकिन इन्ही सूनी कलाइयों ने इस राखी दूर रहकर ही भी बहन के प्यार और विश्वास का रिश्ता सुरक्षा के साथ भी निभाया।

सागर। भारत के इतिहास में शायद यह पहला मौका होगा की भाई बहन के त्यौहार पर दोनों के बीच दूरियां रह गयीं। कुछ घरों में मातम ने डेरा डाल लिया जब अस्पतालों में सांसें बोझिल हो चलीं। तो कहीं भाई अपनी बहन तो बहने अपने भाई के इंतज़ार में थाली सजाए बैठी रहीं । कई शहरों में लॉकडाउन जारी है जिसके चलते आना जाना संभव नहीं हो सका। ऐसी कई कहानियां होंगी जहां आंखें नम हैं। जिस तरह चावल का एक दाना बता देता है की हांडी के सभी चावल पक चुके या नहीं उसी तरह आज राखी पर कुछ नम आंखों का दर्द अस्पतालों में कोरेन्टीन भाई बहन और लॉक डाउन में फसे रिश्ते बयान कर रहे हैं। दीपक बीना के बसाहरी गांव में रहता था। काम की तलाश में राजधानी पहुंचा और वहीं बस गया। कोरोना महामारी लगे लॉकडाउन में भोपाल में ही फस गया। लेकिन संवेदनशील इलाके में होने के कारण उसने घर आने की कोशिश भी नहीं की। इस राखी उसने अपनी बहनों को सूनी कलाई रखकर ही सुरक्षित रखा। आशीष जबलपुर में हैं बहन सागर में रहती जबलपुर में संक्रमण बढ़ रहा लिहाजा ये पहली राखी थी जब संगीता और आशीष मिल न सके। बहुत से लोग इसी तरह इस त्यौहार पर डायर रहकर भी वो कर गए जो इस रिश्ते का असली उद्देश्य है। लेकिन उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना है। सुरक्षित रहकर अपनी व अपने परिवार की रक्षा कर रिश्ता निभाने वालों को सागर मंथन का सलाम।

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