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बुंदेलखंड के पन्ना में बलदाऊ जू का 144 साल पुराना मंदिर।
अमित प्रभु मिश्रा
हल सृष्टि विशेष….
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भगवान की शक्तियों का भंडार हैं भगवान आदिशेष
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बुंदेलखंड के पन्ना में हैं बलदाऊ जू का मंदिर
मंदिर में प्रवेश करने के लिए 16 सीढिय़ां हैं अंदर 16 मंडप और 16 झरोखे हैं। मंदिर 16 विशाल स्तंभों पर टिका है।
सागर। श्रीकृष्ण के जहां देश भर में अनेक मंदिर हैं वहीं बलदाऊ के बहुत कम मंदिर देखने को मिलते हैं। मध्यप्रदेश के पन्ना जिला मुख्यालय पर स्थित बलदाऊ का अद्वितीय मंदिर और प्रतिमा दर्शनीय हैं। ” यह मंदिर संपूर्ण विश्व में इस मायने में अद्वितीय है कि बाहर से यह चर्च की शैली में बना है तो अंदर श्रीकृष्ण की सोलह कलाओं के दर्शन होते हैं” । कहा जाता है कि यह इटली के एक चर्च की प्रतिकृति है।वैसे सभी त्योहारों पर यहां विशेष पूजा अर्चना होती है पर हलषष्ठी पर्व की बात ही कुछ अलग होती है। देव बलदाऊ को समर्पित इस पर्व पर पूजा अर्चना करने जिला भर से लोग आते हैं। मंदिर प्रांगण श्रद्धालुओं की उपस्थिति से भर जाता है। परंपरागत रूप से राजपरिवार के लोग इस दिन यहां पूजा करने आते हैं।
मंदिर का निर्माण करीब 150 साल पहले तत्कालीन पन्ना नरेश रुद्र प्रताप सिंह ने कराया था। कहा जाता है कि कृषि कार्य में उनकी विशेष रुचि थी, जिसकी वजह से उन्होंने हल धारण किए बलदाऊ के भव्य मंदिर का निर्माण कराया।
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त्यौहारों की सनातनी परंपरा
सनातन धर्म में ईश्वर क्या है यह जानना है तो पर्वों को समझिए। हाथ की मेहदी नहीं छूटती और एक और उत्सव फिर हथेलियों पर रचने लगता है। ये एक जीवन शैली है जिसमे बहगवां सहगामी हैं। आज हलसृष्टि तायौहार की बात होनी है। यह त्यौहार सृजन का प्रतीक है। बारिश के लिए किसान ईश्वर की उपासना करते हैं। तो माताएं अपने पुत्रों के लिए। गर्मियों के बाद बोवनी के लिए बादलों को बुलाने अन्नदाता भगवान को मनाने अनुष्ठान करते हैं। यह निश्छल आह्वाहन एक निर्मलता है जो चमत्कार कर देता है। रामधुन होती हैं भंडारे होते हैं। हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को बलराम जयंती यानी हल षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। उनका प्रमुख शस्त्र हल और मूसल है इसलिए इस दिन किसान हल की पूजा करते हैं। साथ ही माताएं अपने पुत्रों के लिए व्रत करती हैं।
शक्तियों का भंडार हैं योगमाया और आदिशेष
परमब्रम्ह यानी ईश्वर ने अपने अवतारों में अपनी शक्ति यानी अपने शेष को साथ अवतरित किया। ईश्वर की एक शक्ति है योग माया तो दूसरी है सहस्त्रणाग। इसके पीछे कई मान्यताएं हैं। कभी द्वंद भी दिखाई देता है जैसे राम जितने शांत और सरल थे लक्ष्मण उतने ही चंचन और क्रोधी थे। वैसे ही कृष्ण अवतार में बलराम भी इसी तरह श्रीकृष्ण के उलट स्वभाव के थे। इस तरह जैसे की साधारण मनुष्य में द्वंद होता है वैसे ही ईश्वर भी कभी बलराम को समझाते हैं तो कभी राम अवतार में लक्ष्मण को।
कौन हैं आदिशेष शेष
शेषनाग या अदिशेष ऋषि कश्यप और कद्रू के पुत्र हैं। वह नागराज भी है। परंतु जब उनकी माता ने विनता जी, जो गरुड़ जी की माता है उनके साथ छल किया तब अदिशेष अपनी माता को छोड़कर भगवान विष्णु की सेवा में लग गए। वह विष्णु भगवान के परम भक्त हैं और उनको शैया के रूप में आराम देते हैं। वह भगवान विष्णु के साथ क्षीरसागर में ही रहते हैं मान्यताओं के अनुसार उनके हजार फन हैं। इसलिए ही उन्हें अनंतनाग भी कहा जाता है। वह सारे ग्रहों को अपनी कुंडली पर धरे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि जब शेषनाथ सीधे चलते हैं तब ब्रह्मांड में समय रहता है। और जब शेषनाग कुंडली के आकार में आ जाते हैं तो प्रलय आती है। वह भगवान विष्णु के भक्त होने के साथ-साथ उनके अवतारों में भी उनका सहयोग करते हैं।