लब्बोलुआब आप जाने हमने तो कलेजा निकाल कर रख दिया है।

 लब्बोलुआब आप जाने हमने तो कलेजा निकाल कर रख दिया है।

लब्बोलुआब आप जाने हमने तो कलेजा निकाल कर रख दिया है।

अमित प्रभु मिश्रा

मध्यप्रदेश के सिंघासन को लेकर कहीं एक साल पूरा होने का जश्न है, तो कहीं एक साल पूरा होने का मातम है। सत्तारूढ़ दल हो या अपनी ही पार्टी के विधायकों से चोट खाया विपक्ष दोनों अब भी निकल गए सांप की लकीर पीट रहे हैं। जिससे उड़ते धूल के गुबार में जनता देख ही नहीं पा रही कि बीते साल वह घरों में कैद थे। बाहर निकलने पर लाठियां खाते थे। गरीबों ने अभाव में फांके तक किये हैं। लेकिन उदार हृदय जनता बड़ी आसानी से भूल जाती है कि एक महामारी का भी एक साल पूरा हुआ है। बच्चों ने बाहर घूमने की ज़िद करना भी छोड़ दिया था। इलाज के नाम पर ऐसी हताशा कि लगता था मानो दुनिया से मानव नाम की चिड़िया का दाना पानी उठने वाला ही समझो। लेकिन समय से बड़ी दवा कोई नहीं वक़्त ने यह घाव भी भरना शुरू किया और हमें जैसे ही लगने लगा था कि अब कोरोना नहीं है। उपचुनावों की सभाओं, चुनावी रैलियों की भीड़ देखकर हम लापरवाह हुए ही थे कि एक साल पूरा होते ही बीमारी फिरसे लोगों को पकड़ने लगी। हालांकि नए साल में संबल देती वैक्सीन ज़रूर हमारे साथ है। सरकार ने एक बार फिर से कोरोना से लड़ने के लिए योजना बनाली है। हूटर बजाकर मास्क और आपसी दूरी अपनाने के लिए सतर्क किया जाने लगा है। साप्ताहिक लोकडाउन, नाइट कर्फ्यू जैसे तीर अब भी तरकश में हैं ही। वैसे स्मार्ट सिटी सागर में करोड़ों के काम हो रहे हैं तालाब की चिंता लोगों को भी है। उधड़ी पड़ी गलियों के लिए भी हम दुखी हो जाते हैं लेकिन कोई भी काम अपनी प्रक्रिया के दौरान समस्या ही लगता है। पर राजघाट ही कैपेसिटी बढ़ाने का काम प्रक्रिया में भी नहीं है जो शायद बढ़ती आबादी के लिहाज से ज़रूरी था। लेकिन जो प्रक्रिया में हैं वो यकीन कीजिये पूरे होंगे ही, काम पूरा होने के बाद तो हम खुद ही कहते हैं जैसे भी हुआ लेकिन हो तो गया अब सुखद महसूस हो रहा है। लेकिन इस सब से ऊपर रोजगार की चिंता तो है बिना काम धंधे के धन के अभाव में घर कैसे चलेगा। इसके लिए सांसद ने लोकसभा में क्षेत्र के लोगों के लिए उद्योग और रोजगार की मांग ज़रूर उठाई है। लेकिन तब तक के लिए युवा शायद राजनीति का मुह ताक रहे हैं। नगर सरकार भंग है। विधायक जी की भाग दौड़ ये बता रही है की चुनावी ज़मीन तैयार हो रही है। उद्घाटनों की बाढ़ सी आगयी है शहर में दर्जनों पार्क मुस्कुराने लगे हैं मानो कीचड़ में कमल मुस्कुरा रहा हो।
इन तमाम बातों का लब्बोलुआब इतना ही है कि आप समझ गए होंगे। मास्क लगाएं और आपस में दो गज़ की दूरी बनाए रखें। लेकिन इस शहर की तासीर वसीम बरेलवी के इस शेर जैसी है कि

“हर शख़्स दौड़ता है यहां भीड़ की तरफ
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले”

हालात के लिहाज से यूं कहें-
“हर शख़्स दौड़ता है यहां भीड़ की तरफ
फिर ये भी चाहता है उसे कोरोना न हो”

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *