अब कहाँ ढूंढेंगे हम राहत तुझे

 अब कहाँ ढूंढेंगे हम राहत तुझे

तेरे होने भर से ही तो राहत थी अब कहाँ ढूंढेंगे हम राहत तुझे, अमित प्रभु मिश्र

बरछी लेकर चांद निकलने वाला है
घर चलिए अब सूरज ढलने वाला है

बुलाती है मगर जाने नैं
ये दुनिया है उधर जाने का नैं।

एक दौर खत्म हुआ वो मोहब्बत से भरी शायरियों में धड़कता दिल खमोश हुआ। राहत इंदौरी नहीं रहे। “बरछी लेकर चांद निकलने वाला है,  घर चलिए अब सूरज ढलने वाला है” राहत सहाब की वाल पर शायद उनका यही आखिरी शेर था। इसके बाद उन्होंने लिखा की कोविड के शरुआती लक्षण दिखाई देने पर कल मेरा कोरोना टेस्ट किया गया, जिसकी रिपोर्ट पॉज़िटिव आयी है…..ऑरबिंदो हॉस्पिटल में एडमिट हूँ….. दुआ कीजिये जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूँ…. एक और इल्तेजा है, मुझे या घर के दूसरे लोगों को फ़ोन ना करें, मेरी ख़ैरियत ट्विटर और फेसबुक पर आपको मिलती रहेगी…

राहत सहाब की वाल से अपने चाहने वालों को उनका आखिरी पैगाम।

श्री अरबिंदो अस्पताल ने उनके निधन की पुष्टि की है।  “राहत इंदौरी साहब अब नहीं रहे। डॉक्टर के मुताबिक उन्हें दो दिल के दौरे पड़े थे,  हम उन्हें नहीं बचा सके। उन्हें कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद रविवार को अस्पताल लाया गया था। उन्हें 60 फीसदी निमोनिया भी था। जहां मंगलवार शाम करीब 5 बजे उनका निधन हो गया। उधर, इंदौरी साहब के निधन पर शायरी और कविता जगत में मातम जैसा माहौल पनपा है। उनके साथी शायरों, दोस्तों, चाहनेवालों और फैंस ने उनके निधन पर दुख, संवेदना और हैरानी जताई। इन्हीं में से एक हैं कुमार विश्वास। उन्होंने ट्वीट कर कहा- हे ईश्वर! बेहद दुखद! इतनी बेबाक़ ज़िंदगी और ऐसा तरंगित शब्द-सागर इतनी ख़ामोशी से विदा होगा,कभी नहीं सोचा था!

बुलाती है मगर जाने का नैं से उनके जाने तक

बुलाती है मगर जाने का नैं

हज़ारों ग़ज़लें देश विदेश में हज़ारों मुशायरों के साथ सोशल मैदा पर भी उनका अलग रुतबा था। बुलाती है मगर जाने का नहीं जितना फेमस हुआ और नौजवानों के सर चढ़कर बोला इससे हम सभी वाकिफ हैं। वो शायर सबका शायर था। बॉलीवुड में भी उन्होंने दर्जनों फिल्मों के लिए गीत लिखे।

  • चोरी चोरी जब नज़रें मिली,
  • बूमरो बूमरो श्याम रंग बूमरो

जैसे कई खूबसूरत गीत उनकी कलम से निकले हैं।

राहत सहाब के बेटे सतलज राहत की कलम से

शायरी में शेर की दहाड़ भी शामिल की जा सकती है ये राहत साहब ने दिखलाया । ” जब वो बग़ावती शायरी पढ़ते हैं तो कसम से ऐसा लगता है जैसे कोई फक्कड़ दरवेश, बादशाह के दरबार मे उसी के ख़िलाफ़ दहाड़ रहा हो”

सतलज राहत, राहत इंदोरी साहब के बेटे उनके साथ साये की तरह पिछले कई सालों से साथ चलते है।

उसी के ख़ैराती खज़ाने को ठोकर मार के । जब वो मोहब्बत भरी शायरी करते हैं तो उनका अंदाज़ इतना अपनापन लिए और इतना दिलकश लगता है कि जैसे हमारी ही क्लास का कोई सबसे खिलंदड़ बैकबेंचर लड़का जिसे टीचर भी अक्सर बाहर निकाल देती हैं, जो थोड़ा बदमाश सा भी है, वो कहीं से कुछ बेहतरीन शायरी पढ़ के आ गया हो ।ऐसी देसी आवारगी की मिसाल शायरी की तहज़ीब भरी महफिलों में मिलना शायद नामुमकिन ही था जिसे राहत साहब ने मुमकिन बनाया । आज से 40-50 साल पहले जब शायर डाइस पर सिर्फ़ नज़ाक़ती लबो-लहजे की बाउन्डरियों में ही अटके रहते थे, ऐसे में उन नफासती शामियानों में धड़ाधड़ छेद कर के बेबाक, बेख़ौफ़ दहाड़ के साथ बेहद भारी भरकम शेर कहने का हुनर और ताकत अगर खुदा ने किसी को बख़्शी थी तो ये बस ख़ुदा का ही इनाम था । वक़्त चलता रहता है, इंसान उम्र से नहीं लड़ सकता । राहत साहब हमारे हीरो हैं, हमारा हीरा हैं ।

 

अब कहां राहत

तेरे होने भर से ही तो राहत थी, अब कहाँ ढूंढेंगे हम राहत तुझे, अमित प्रभु मिश्र

 

आरंभिक शिक्षा देवास और इंदौर के नूतन स्कूल से प्राप्त करने के बाद इंदौर विश्वविद्यालय से उर्दू में एम.ए. और ‘उर्दू मुशायरा’ शीर्षक से पीएच.डी. की डिग्री हासिल की। उसके बाद 16 वर्षों तक इंदौर विश्वविदायालय में उर्दू साहित्य के अध्यापक के तौर पर अपनी सेवाएं दी और त्रैमासिक पत्रिका ‘शाखें’ का 10 वर्षों तक संपादन किया। पिछले 40-45 वर्षों से राहत साहब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मुशायरों की शान बने हुए थे।

 

 

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